उमर खालिद को 14 दिन की ‘आजादी’, फोन समेत कई शर्तों का करना होगा पालन
दिल्ली दंगों की कथित साजिश से संबंधित UAPA (गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम) मामले में तीन साल से अधिक समय से जेल में बंद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व छात्र और कार्यकर्ता उमर खालिद को दिल्ली की एक अदालत ने 14 दिनों की अंतरिम जमानत दे दी है। यह ‘आजादी’ उन्हें अपनी बहन की शादी में शामिल होने के लिए मिली है, लेकिन इसके साथ कई कड़ी शर्तें जुड़ी हुई हैं, जिनमें फोन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध और मीडिया से बात न करने जैसी शर्तें शामिल हैं।
उमर खालिद को 14 दिन की ‘आजादी’, फोन समेत कई शर्तों का करना होगा पालन
घटना का सारांश — कौन, क्या, कब, कहाँ
दिल्ली, 11 जनवरी, 2024: जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद को दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने शुक्रवार, 11 जनवरी, 2024 को 14 दिन की अंतरिम जमानत दी। खालिद को 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़ी एक बड़ी साजिश के मामले में UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया था और वह सितंबर 2020 से न्यायिक हिरासत में हैं। यह अंतरिम जमानत उन्हें अपनी बहन की शादी में शामिल होने के लिए मानवीय आधार पर प्रदान की गई है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत की अदालत ने यह फैसला सुनाया। जमानत की अवधि 14 जनवरी से 28 जनवरी तक प्रभावी रहेगी। खालिद को 29 जनवरी को आत्मसमर्पण करना होगा। अदालत ने जमानत देते हुए कई सख्त शर्तें लगाई हैं, जिनका खालिद को इन 14 दिनों के दौरान पालन करना अनिवार्य होगा।
उमर खालिद को 14 दिन की ‘आजादी’, फोन समेत कई शर्तों का करना होगा पालन — प्रमुख बयान और संदर्भ
उमर खालिद के वकील, त्रिदीप पाइस ने अदालत में दलील दी कि खालिद की बहन की शादी 15 जनवरी से 28 जनवरी के बीच होनी है और ऐसे पारिवारिक समारोह में उनकी उपस्थिति आवश्यक है। उन्होंने मानवीय आधार पर अंतरिम जमानत का अनुरोध किया। बचाव पक्ष ने जोर दिया कि खालिद के खिलाफ लगाए गए आरोप अभी तक साबित नहीं हुए हैं और वह एक लंबे समय से हिरासत में हैं, ऐसे में उन्हें इस महत्वपूर्ण पारिवारिक आयोजन में शामिल होने का मौका दिया जाना चाहिए।
हालांकि, दिल्ली पुलिस ने अंतरिम जमानत याचिका का कड़ा विरोध किया। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि खालिद की रिहाई से समाज में अशांति फैल सकती है और वह गवाहों को प्रभावित करने या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि खालिद का समाज में प्रभाव है और उनकी उपस्थिति से कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है। पुलिस ने खालिद पर देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने और दिल्ली दंगों की साजिश रचने का आरोप लगाया है, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की जान गई थी।
न्यायाधीश अमिताभ रावत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, मानवीय आधार को प्राथमिकता देते हुए अंतरिम जमानत देने का फैसला किया। हालांकि, उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए कई सख्त शर्तें लगाईं कि खालिद की रिहाई से किसी भी प्रकार की गड़बड़ी न हो और न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित न हो। इन शर्तों में सबसे प्रमुख यह है कि खालिद को इस दौरान मोबाइल फोन का उपयोग करने की अनुमति नहीं होगी। उन्हें मीडिया के किसी भी व्यक्ति से बात करने या कोई भी इंटरव्यू देने से भी प्रतिबंधित किया गया है।
इसके अलावा, खालिद को दिल्ली नहीं छोड़ने का आदेश दिया गया है और उन्हें हर दूसरे दिन स्थानीय पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना होगा। उन्हें अपनी वर्तमान लोकेशन पुलिस को बतानी होगी और किसी भी प्रकार की सार्वजनिक सभा या विरोध प्रदर्शन में शामिल होने से भी रोका गया है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि खालिद को सोशल मीडिया पर कोई भी पोस्ट करने या किसी भी प्लेटफॉर्म पर टिप्पणी करने की अनुमति नहीं होगी। इन शर्तों का उल्लंघन करने पर उनकी जमानत तत्काल रद्द की जा सकती है।
यह फैसला तब आया है जब खालिद की नियमित जमानत याचिका दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों में लंबित है। UAPA के तहत जमानत मिलना बेहद मुश्किल होता है, क्योंकि इस कानून में जमानत के लिए सख्त प्रावधान हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2022 में खालिद की नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। सुप्रीम कोर्ट में भी उनकी याचिका पर सुनवाई चल रही है।
पार्टियों की प्रतिक्रिया
उमर खालिद को मिली अंतरिम जमानत पर राजनीतिक गलियारों से मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं ने इस मामले पर सीधे टिप्पणी करने से परहेज करते हुए कहा है कि “कानून अपना काम कर रहा है और न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान किया जाना चाहिए।” भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, “यह अदालत का फैसला है और हमें इसका सम्मान करना चाहिए। लेकिन, दिल्ली दंगा मामले की गंभीरता को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए।” सत्ता पक्ष का मानना है कि अदालत ने सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद ही यह निर्णय लिया होगा, और शर्तों के साथ जमानत देना यही दर्शाता है कि मामले की गंभीरता बरकरार है।
विपक्षी दलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस फैसले का स्वागत किया है, हालांकि इसे 'बहुत देर से आया' कदम बताया है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “तीन साल से अधिक समय तक किसी व्यक्ति को हिरासत में रखना चिंताजनक है। देर से ही सही, न्याय की दिशा में यह एक छोटा कदम है।” उन्होंने यह भी कहा कि UAPA जैसे कठोर कानूनों की समीक्षा होनी चाहिए, जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सीमित करते हैं।
आम आदमी पार्टी (AAP) और वामपंथी दलों ने भी मानवीय आधार पर दी गई इस जमानत का समर्थन किया है। सीपीआई (एम) के एक नेता ने टिप्पणी की, “यह दर्शाता है कि हमारी न्यायपालिका अभी भी मानवीय मूल्यों को महत्व देती है। हालांकि, खालिद जैसे लोगों को बिना किसी ठोस सबूत के इतने लंबे समय तक जेल में रखना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।” कई कार्यकर्ताओं और अकादमिक जगत के लोगों ने भी इस फैसले को 'थोड़ी राहत' बताया है और खालिद की नियमित जमानत की मांग दोहराई है। उनका तर्क है कि लोकतांत्रिक समाज में विरोध प्रदर्शन का अधिकार मौलिक है और इसे देशद्रोह के आरोप से नहीं दबाया जाना चाहिए।
सोशल मीडिया पर भी यह खबर तेजी से फैली, जहां लोगों ने अपनी राय व्यक्त की। एक वर्ग ने अदालत के फैसले की सराहना की और इसे न्याय की जीत बताया, वहीं दूसरे वर्ग ने इस पर सवाल उठाते हुए दिल्ली दंगों के पीड़ितों को न्याय दिलाने की मांग की। यह प्रतिक्रिया खालिद के मामले की संवेदनशीलता और समाज में इसके गहरे ध्रुवीकरण को दर्शाती है।
राजनीतिक विश्लेषण / प्रभाव और मायने
उमर खालिद को मिली 14 दिन की अंतरिम जमानत, भले ही शर्तों के साथ हो, एक महत्वपूर्ण न्यायिक घटना है, जिसके गहरे राजनीतिक और सामाजिक मायने हैं। सबसे पहले, यह न्यायपालिका की उस भूमिका को रेखांकित करता है जिसमें वह मानवीय आधार पर भी निर्णय लेने में सक्षम है, भले ही मामला कितना भी संवेदनशील क्यों न हो। यह दर्शाता है कि अदालतें केवल कानूनी प्रावधानों पर ही नहीं, बल्कि व्यक्ति के मौलिक अधिकारों और मानवीय स्थितियों पर भी विचार करती हैं।
दूसरा, यह फैसला UAPA जैसे कठोर कानूनों के तहत जमानत प्राप्त करने की चुनौतियों को फिर से सामने लाता है। खालिद को एक महत्वपूर्ण पारिवारिक आयोजन के लिए भी केवल अंतरिम जमानत मिली है, जबकि उनकी नियमित जमानत याचिका कई वर्षों से लंबित है। यह स्थिति ऐसे कानूनों की वैधता और उनके दुरुपयोग पर चल रही बहस को फिर से हवा देती है, विशेष रूप से नागरिक समाज और मानवाधिकार संगठनों के बीच। वे लंबे समय से UAPA की सख्त प्रावधानों पर सवाल उठा रहे हैं, जो आरोपी को लंबे समय तक बिना जमानत के हिरासत में रखने की अनुमति देते हैं।
तीसरा, यह दिल्ली दंगा मामले की संवेदनशीलता और उसकी जटिलता को भी दर्शाता है। यह मामला 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा से जुड़ा है, जिसमें 50 से अधिक लोगों की मौत हुई थी और भारी संपत्ति का नुकसान हुआ था। खालिद पर इस हिंसा की 'मास्टरमाइंड' साजिश रचने का आरोप है। उनकी जमानत पर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं यह भी दिखाती हैं कि यह मामला कितना राजनीतिकृत हो चुका है। भाजपा इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून-व्यवस्था का मुद्दा मानती है, जबकि विपक्षी दल इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों के हनन के रूप में देखते हैं।
चौथा, यह घटना नागरिक स्वतंत्रता और राज्य की सुरक्षा के बीच संतुलन साधने की चुनौती को उजागर करती है। यह सवाल उठाता है कि क्या किसी आरोपी को, विशेषकर ऐसे मामलों में, लंबे समय तक हिरासत में रखना उचित है, भले ही उस पर गंभीर आरोप क्यों न हों। यह फैसला एक बार फिर 'बेल, नॉट जेल' (जेल नहीं, जमानत) के सिद्धांत पर बहस को बढ़ावा दे सकता है, विशेष रूप से उन मामलों में जहां मुकदमा शुरू होने में काफी देरी हो रही है। खालिद का मामला भारत में न्याय वितरण प्रणाली की दक्षता और मानवाधिकारों के संरक्षण पर व्यापक चर्चा को प्रेरित करेगा।
क्या देखें
- जमानत की शर्तों का पालन: उमर खालिद द्वारा निर्धारित सख्त शर्तों, जैसे फोन का उपयोग न करना, मीडिया से बात न करना और दिल्ली न छोड़ना, का पालन कैसे किया जाता है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। किसी भी उल्लंघन से उनकी जमानत रद्द हो सकती है।
- 29 जनवरी को आत्मसमर्पण: खालिद को 29 जनवरी को अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करना होगा। उनका समय पर आत्मसमर्पण न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास को मजबूत करेगा।
- नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई: सुप्रीम कोर्ट में खालिद की नियमित जमानत याचिका पर आगे क्या प्रगति होती है, यह देखना होगा। यह उनके भविष्य की कानूनी स्थिति के लिए महत्वपूर्ण होगा।
- दिल्ली दंगा मामले की प्रगति: उमर खालिद और अन्य आरोपियों से जुड़े दिल्ली दंगा मामले की सुनवाई कैसे आगे बढ़ती है, खासकर अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले सबूतों और गवाहों की जांच के संदर्भ में।
- राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया: आने वाले दिनों में इस अंतरिम जमानत पर राजनीतिक दलों, नागरिक समाज और जनता की प्रतिक्रियाएं कैसे विकसित होती हैं, खासकर जब खालिद अपनी बहन की शादी में शामिल होंगे।
निष्कर्ष — आगे की संभावनाएँ
उमर खालिद को मिली 14 दिन की अंतरिम जमानत उनके लिए और उनके परिवार के लिए एक छोटी सी राहत है। यह दर्शाता है कि भारतीय न्याय प्रणाली, अपनी कठोरता के बावजूद, मानवीय आधार पर विचार करने की क्षमता रखती है। हालांकि, यह 'आजादी' बेहद अस्थायी है और सख्त शर्तों के अधीन है, जो उनके खिलाफ लगे आरोपों की गंभीरता और मामले की संवेदनशीलता को भी दर्शाती है। खालिद के लिए असली कानूनी लड़ाई अभी भी बाकी है, क्योंकि उनकी नियमित जमानत याचिका अभी भी उच्च न्यायालयों में लंबित है।
यह घटना भारत में नागरिक स्वतंत्रता, विरोध प्रदर्शन के अधिकार और UAPA जैसे कानूनों के उपयोग पर बहस को फिर से तेज करेगी। यह उन अनगिनत विचाराधीन कैदियों के मामलों पर भी ध्यान आकर्षित करता है, जो लंबे समय से बिना किसी ठोस सबूत के हिरासत में हैं। भविष्य में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या खालिद की नियमित जमानत याचिका को मंजूरी मिलती है और दिल्ली दंगा मामले का अंतिम परिणाम क्या होता है, जो भारत के राजनीतिक और न्यायिक परिदृश्य पर दूरगामी प्रभाव डालेगा।
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