भारत ने अमेरिका को दिया 'बेस्ट ऑफर', ट्रंप के अधिकारी का दावा; ट्रेड डील पर बन गई बात?

हाल ही में, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के एक वरिष्ठ व्यापार अधिकारी द्वारा एक चौंकाने वाला दावा सामने आया है। उनके अनुसार, भारत ने ट्रंप प्रशासन के दौरान अमेरिका को एक 'सर्वोत्तम प्रस्ताव' (Best Offer) दिया था, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच लंबे समय से लंबित व्यापार समझौते (ट्रेड डील) को अंतिम रूप देना था। इस दावे ने भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों और भविष्य में संभावित समझौतों पर नई बहस छेड़ दी है, खासकर तब जब दोनों देश रणनीतिक साझेदारी को गहरा करने का प्रयास कर रहे हैं।
भारत ने अमेरिका को दिया 'बेस्ट ऑफर'
घटना का सारांश — कौन, क्या, कब, कहाँ
नई दिल्ली, 22 मार्च, 2024: यह दावा पूर्व अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (USTR) रॉबर्ट लाइटहाइज़र ने किया है, जो ट्रंप प्रशासन के दौरान भारत के साथ व्यापार वार्ताओं में प्रमुख व्यक्ति थे। लाइटहाइज़र ने अपनी हालिया पुस्तक में यह बात कही है, जिसके अंशों ने वैश्विक मीडिया का ध्यान आकर्षित किया है। उनका कहना है कि भारत ने व्यापार असंतुलन को कम करने और अमेरिकी उत्पादों के लिए बाजार पहुंच बढ़ाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण रियायतें देने की पेशकश की थी।
यह कथित 'बेस्ट ऑफर' ट्रंप प्रशासन के अंतिम वर्षों के दौरान सामने आया था, जब भारत और अमेरिका एक सीमित व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने के करीब थे। हालांकि, लाइटहाइज़र के अनुसार, अमेरिकी प्रशासन ने उस समय भारत के इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि उन्हें लगा कि वे एक व्यापक और अधिक महत्वाकांक्षी समझौते को सुरक्षित कर सकते हैं। यह घटनाक्रम द्विपक्षीय व्यापार वार्ताओं के जटिल इतिहास को दर्शाता है।
भारत ने अमेरिका को दिया 'बेस्ट ऑफर', ट्रंप के अधिकारी का दावा; ट्रेड डील पर बन गई बात? — प्रमुख बयान और संदर्भ
रॉबर्ट लाइटहाइज़र ने अपनी पुस्तक 'नो ट्रेड इज़ फ्री' में विस्तार से बताया है कि कैसे भारत ने व्यापार वार्ता में 'बड़ी छूट' की पेशकश की थी। उनके मुताबिक, भारत अमेरिका के साथ एक महत्वपूर्ण समझौता करना चाहता था और इसके लिए कई प्रमुख बिंदुओं पर लचीलापन दिखाया था। इनमें अमेरिकी कृषि उत्पादों, चिकित्सा उपकरणों और हार्ले-डेविडसन जैसी प्रतिष्ठित अमेरिकी वस्तुओं पर लगाए जाने वाले उच्च शुल्कों को कम करने जैसे मुद्दे शामिल थे, जो ट्रंप प्रशासन के लिए चिंता का विषय थे।
भारत ने विशेष रूप से डेयरी उत्पादों और पोल्ट्री जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भी अमेरिकी उत्पादों के लिए बाजार पहुंच बढ़ाने पर विचार किया था। इसके अलावा, बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) और डेटा स्थानीयकरण जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई थी, जहां अमेरिका भारत से और अधिक अनुपालन की उम्मीद कर रहा था। भारतीय अधिकारियों ने उस समय संकेत दिया था कि वे एक संतुलित समझौता चाहते हैं जो दोनों देशों के हितों की रक्षा करे।
हालांकि, लाइटहाइज़र के दावे के अनुसार, ट्रंप प्रशासन ने उस समय भारत के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। उनका मानना था कि वे एक 'पूर्ण व्यापार समझौता' हासिल कर सकते हैं, जो अधिक अमेरिकी उद्योगों को लाभान्वित करेगा और बड़े व्यापार असंतुलन को संबोधित करेगा। यह निर्णय अमेरिकी पक्ष की ओर से एक रणनीति का हिस्सा था, जिसने अंततः एक छोटे समझौते को भी पूरा होने से रोक दिया।
उस समय भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संबंध तनावपूर्ण थे, खासकर तब जब ट्रंप प्रशासन ने भारत को अपनी 'जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज' (GSP) सूची से हटा दिया था, जिससे भारतीय निर्यातकों को शुल्क मुक्त पहुंच का लाभ मिलना बंद हो गया था। भारत ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए कुछ अमेरिकी उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगाए थे। ये सब कारक व्यापार डील को अंतिम रूप देने में बाधा बन रहे थे।
भारतीय अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से कभी भी किसी 'बेस्ट ऑफर' की बात स्वीकार नहीं की है, लेकिन यह स्वीकार किया गया था कि दोनों पक्ष एक 'प्रारंभिक' या 'सीमित' व्यापार समझौते पर काम कर रहे थे। भारतीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने भी कई बार कहा था कि भारत एक 'मेगा' या 'बड़ा' व्यापार समझौता नहीं चाहता था, बल्कि एक ऐसा समझौता चाहता था जो दोनों देशों के लिए फायदेमंद हो और विवादों को सुलझा सके।
प्रभाव और प्रतिक्रिया
रॉबर्ट लाइटहाइज़र के इस दावे पर भारत या अमेरिका की वर्तमान सरकारों की ओर से तत्काल कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, भारतीय व्यापार हलकों में इस पर चर्चा शुरू हो गई है। कई व्यापार विशेषज्ञ और पूर्व राजनयिक इस दावे को सावधानी से देख रहे हैं। उनका मानना है कि यह दावा ट्रंप प्रशासन की व्यापार नीति के दृष्टिकोण को दर्शाता है, जहां वे हमेशा अधिकतम रियायतें हासिल करने की कोशिश करते थे।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यदि भारत ने वास्तव में ऐसा कोई प्रस्ताव दिया था और अमेरिका ने उसे ठुकरा दिया था, तो यह अमेरिकी पक्ष की ओर से एक चूक थी। उनका तर्क है कि एक छोटा समझौता भी द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में विश्वास बहाल करने और भविष्य के बड़े समझौतों के लिए जमीन तैयार करने में मदद करता। यह दोनों देशों के बीच व्यापार के मुद्दों को सुलझाने की क्षमता पर भी सवाल उठाता है।
अमेरिकी व्यापार समुदाय भी इस दावे पर विचार कर रहा है। कई अमेरिकी कंपनियों ने लंबे समय से भारत में बाजार पहुंच बढ़ाने और शुल्कों को कम करने की वकालत की है। उनके लिए, भारत का 'बेस्ट ऑफर' अगर स्वीकार कर लिया जाता तो अमेरिकी निर्यातकों को काफी फायदा हो सकता था। यह मामला अब बाइडेन प्रशासन के लिए एक नई चुनौती पेश कर सकता है, क्योंकि उन्हें भारत के साथ एक नए व्यापार ढांचे पर काम करना है।
राजनीतिक विश्लेषण / प्रभाव और मायने
लाइटहाइज़र का दावा भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों की जटिल गतिशीलता को उजागर करता है। यह दर्शाता है कि दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता कितनी चुनौतीपूर्ण हो सकती है, जहाँ प्रत्येक पक्ष अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखता है। ट्रंप प्रशासन की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति ने व्यापार वार्ताओं को और कठिन बना दिया था, जिससे कई देशों के साथ समझौते मुश्किल हो गए थे।
यदि यह दावा सच है कि भारत ने 'बेस्ट ऑफर' दिया था और उसे अस्वीकार कर दिया गया था, तो यह भारतीय नीति-निर्माताओं के लिए भी एक सीख हो सकती है। यह दिखाता है कि अत्यधिक लचीलापन भी हमेशा वांछित परिणाम नहीं देता, खासकर जब दूसरा पक्ष अत्यधिक महत्वाकांक्षी हो। इससे भविष्य की वार्ताओं में भारत का रुख अधिक सतर्क हो सकता है।
वर्तमान बाइडेन प्रशासन के तहत, भारत-अमेरिका संबंध रणनीतिक मोर्चे पर मजबूत हुए हैं, लेकिन व्यापार के मोर्चे पर अभी भी चुनौतियां बनी हुई हैं। बाइडेन प्रशासन ने ट्रंप की तरह आक्रामक व्यापार रणनीति नहीं अपनाई है, लेकिन वे अभी भी अमेरिकी श्रमिकों और उद्योगों के हितों की रक्षा को प्राथमिकता देते हैं। यह दावा अब बाइडेन प्रशासन पर भारत के साथ व्यापार वार्ता को पुनर्जीवित करने का दबाव डाल सकता है, खासकर तब जब वे चीन के विकल्प के रूप में भारत को देखते हैं।
यह घटनाक्रम दोनों देशों के आर्थिक संबंधों को एक नए दृष्टिकोण से देखने का अवसर भी प्रदान करता है। एक सफल व्यापार समझौता न केवल द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देगा, बल्कि यह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने और चीन पर निर्भरता कम करने के साझा लक्ष्यों को भी मजबूत करेगा। इसके लिए दोनों पक्षों को लचीलापन और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना होगा।
क्या देखें
- वर्तमान स्थिति और वार्ताएँ: भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ताएं किस चरण में हैं? क्या बाइडेन प्रशासन इस दावे के बाद कोई नई पहल करेगा या भारत नए प्रस्तावों के साथ सामने आएगा? यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या कोई नया समझौता जल्द ही सामने आता है।
- भारत का नया रुख: क्या भारत अब भविष्य की वार्ताओं में अधिक सतर्क रुख अपनाएगा, यह देखते हुए कि उसका पिछला 'बेस्ट ऑफर' स्वीकार नहीं किया गया था? भारतीय सरकार की ओर से कोई आधिकारिक टिप्पणी या रणनीतिगत बदलाव देखना दिलचस्प होगा।
- प्रमुख विवादित मुद्दे: कृषि उत्पादों, चिकित्सा उपकरणों और डिजिटल व्यापार जैसे प्रमुख क्षेत्रों में मतभेद कैसे सुलझाए जाएंगे? इन मुद्दों पर दोनों देशों की बातचीत की प्रगति व्यापार समझौते के भविष्य को निर्धारित करेगी।
- ट्रंप प्रशासन का प्रभाव: क्या यह दावा भविष्य में अमेरिकी चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के लिए एक राजनीतिक मुद्दा बनेगा, जहाँ वे अपनी पिछली व्यापार नीतियों का बचाव करेंगे? यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी पार्टी इस दावे का उपयोग कैसे करती है।
- बाइडेन प्रशासन की प्रतिक्रिया: क्या बाइडेन प्रशासन लाइटहाइज़र के दावे पर कोई आधिकारिक टिप्पणी करेगा या अपनी वर्तमान व्यापार नीति में कोई बदलाव करेगा? उनके लिए भारत के साथ व्यापार संबंधों को संतुलित करना एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
निष्कर्ष — आगे की संभावनाएँ
रॉबर्ट लाइटहाइज़र का दावा भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों की जटिलताओं को एक बार फिर सामने लाता है। यदि भारत ने वास्तव में एक महत्वपूर्ण ऑफर दिया था जिसे स्वीकार नहीं किया गया, तो यह दोनों देशों के लिए एक मिस्ड अपॉर्चुनिटी थी। यह घटनाक्रम भविष्य की व्यापार वार्ताओं को प्रभावित कर सकता है, जहां दोनों पक्ष शायद अधिक सतर्क और विचारशील दृष्टिकोण अपनाएंगे।
हालांकि, भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी बढ़ती जा रही है, और व्यापार संबंध इस समग्र रिश्ते का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। दोनों देशों को मिलकर काम करने और उन बिंदुओं को खोजने की आवश्यकता है जहां वे एक-दूसरे को लाभ पहुंचा सकते हैं। एक संतुलित और न्यायसंगत व्यापार समझौता न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा, बल्कि यह दोनों लोकतांत्रिक देशों के बीच विश्वास और सहयोग को भी गहरा करेगा, जो वैश्विक स्थिरता के लिए आवश्यक है।
Comments
Comment section will be displayed here.