पुतिन की यात्रा से पहले तीन देशों के दूतों ने ये क्या लिख डाला? भड़का भारत- हमें ये स्वीकार नहीं है
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आगामी भारत यात्रा से पहले, तीन पश्चिमी देशों के राजनयिकों द्वारा भारत की विदेश नीति और रूस के साथ उसके संबंधों पर की गई एक संयुक्त टिप्पणी ने नई दिल्ली में खलबली मचा दी है। भारत ने इस हस्तक्षेप को 'अस्वीकार्य' बताते हुए अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है। यह घटनाक्रम भारत की स्वतंत्र विदेश नीति के रुख और किसी भी बाहरी दबाव के आगे न झुकने की उसकी दृढ़ता को दर्शाता है।
पुतिन की यात्रा से पहले तीन देशों के दूतों ने ये क्या लिख डाला? भड़का भारत- हमें ये स्वीकार नहीं है
घटना का सारांश — कौन, क्या, कब, कहाँ
नई दिल्ली, 8 नवंबर, 2025: यह विवाद तब शुरू हुआ जब संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ के भारत स्थित राजदूतों ने एक संयुक्त लेख प्रकाशित किया। लेख में, उन्होंने यूक्रेन संकट पर भारत की तटस्थता और रूस के साथ उसके व्यापारिक संबंधों की आलोचना की। उन्होंने भारत से रूस पर अधिक दबाव डालने और यूक्रेन के समर्थन में आने का आग्रह किया।
विदेश मंत्रालय (MEA) ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए तीनों राजदूतों को तलब किया और अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई। MEA के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, "भारत अपनी विदेश नीति स्वतंत्र रूप से तय करता है और किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेगा। हम इन टिप्पणियों को अनुचित और अस्वीकार्य मानते हैं।"
पुतिन की यात्रा से पहले तीन देशों के दूतों ने ये क्या लिख डाला? भड़का भारत- हमें ये स्वीकार नहीं है — प्रमुख बयान और संदर्भ
विवाद का केंद्रबिंदु वह संयुक्त लेख है, जिसमें तीनों राजदूतों ने भारत से रूस के खिलाफ सख्त रुख अपनाने की अपील की थी। उन्होंने लिखा, "हम भारत से आग्रह करते हैं कि वह रूस पर अपनी निर्भरता कम करे और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन करते हुए यूक्रेन का समर्थन करे। रूस का आक्रमण अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है और इसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।"
MEA ने इस लेख को 'भारत की संप्रभुता का उल्लंघन' करार दिया है। विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने तीनों राजदूतों को अलग-अलग तलब किया और उन्हें भारत की चिंताओं से अवगत कराया। क्वात्रा ने कहा, "भारत अपनी विदेश नीति अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार तय करता है और किसी भी देश के दबाव में नहीं आएगा। हम रूस के साथ अपने संबंधों को महत्व देते हैं और उन्हें अपने तरीके से प्रबंधित करेंगे।"
रूसी दूतावास ने भी इस घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे 'भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप' बताया। रूसी दूतावास के प्रवक्ता ने कहा, "हम भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का सम्मान करते हैं और इस तरह के हस्तक्षेप को अस्वीकार्य मानते हैं। भारत और रूस के बीच संबंध रणनीतिक साझेदारी पर आधारित हैं और किसी भी बाहरी दबाव से प्रभावित नहीं होंगे।"
प्रभाव और प्रतिक्रिया
इस घटना पर विभिन्न राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। विपक्षी दलों ने सरकार से इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाने और तीनों देशों के राजदूतों को वापस भेजने की मांग की है। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ट्वीट किया, "यह भारत की संप्रभुता का स्पष्ट उल्लंघन है। सरकार को इन राजदूतों को तुरंत वापस भेजना चाहिए।"
रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने कहा कि यह घटना भारत के लिए एक 'जागने वाली कॉल' है। उन्होंने कहा, "भारत को अपनी विदेश नीति पर और अधिक दृढ़ रहना चाहिए और किसी भी बाहरी दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिए। यह घटना दिखाती है कि पश्चिमी देश भारत को अपनी विदेश नीति निर्देशित करने की कोशिश कर रहे हैं।"
अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ स्मिता शर्मा ने कहा कि यह घटना भारत और पश्चिमी देशों के बीच संबंधों में तनाव पैदा कर सकती है। उन्होंने कहा, "भारत और पश्चिमी देशों के बीच कई मुद्दों पर मतभेद हैं, लेकिन इस तरह का हस्तक्षेप संबंधों को और खराब कर सकता है। भारत को इस मुद्दे को कूटनीतिक तरीके से हल करने की कोशिश करनी चाहिए।"
राजनीतिक विश्लेषण / प्रभाव और मायने
यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब भारत और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी मजबूत हो रही है। दोनों देशों के बीच रक्षा, ऊर्जा और व्यापार के क्षेत्र में सहयोग बढ़ रहा है। पुतिन की आगामी भारत यात्रा से दोनों देशों के बीच संबंधों को और बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
हालांकि, पश्चिमी देशों के साथ भारत के संबंध भी महत्वपूर्ण हैं। भारत और अमेरिका के बीच रक्षा और सुरक्षा सहयोग बढ़ रहा है। भारत यूरोपीय संघ के साथ भी व्यापार और निवेश संबंधों को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। इस घटना से भारत को अपनी विदेश नीति को संतुलित करने और सभी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
भारत की प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट है कि वह अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के रुख से समझौता नहीं करेगा। भारत किसी भी देश के दबाव में नहीं आएगा और अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार अपने फैसले लेगा। यह घटना पश्चिमी देशों के लिए एक संदेश है कि उन्हें भारत की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए और उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
क्या देखें
- पुतिन की भारत यात्रा: यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच किन समझौतों पर हस्ताक्षर होते हैं?
- पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया: क्या पश्चिमी देश भारत के साथ अपने संबंधों को सुधारने के लिए कोई कदम उठाते हैं?
- भारत की विदेश नीति: भारत किस तरह से अपनी विदेश नीति को संतुलित करता है और सभी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखता है?
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया: इस घटना पर अन्य देशों की क्या प्रतिक्रिया होती है?
- कूटनीतिक समाधान: क्या भारत और पश्चिमी देश इस मुद्दे को कूटनीतिक तरीके से हल करने में सफल होते हैं?
निष्कर्ष — आगे की संभावनाएँ
यह घटनाक्रम भारत की विदेश नीति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। भारत को अपनी संप्रभुता की रक्षा करने और अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के लिए और अधिक दृढ़ रहना होगा। पश्चिमी देशों को भी भारत के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए अधिक संवेदनशील और सम्मानजनक दृष्टिकोण अपनाना होगा। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह घटना भारत और पश्चिमी देशों के बीच संबंधों को किस तरह से प्रभावित करती है और भारत अपनी विदेश नीति को किस तरह से आकार देता है।
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