'इंदिरा गांधी ने PAK की न्यूक्लियर साइट पर हमले की मंजूरी...', CIA के पूर्व अधिकारी का दावा
एक पूर्व CIA अधिकारी के हालिया दावों ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंधों के इतिहास को फिर से उजागर कर दिया है। अधिकारी का कहना है कि तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के परमाणु स्थलों पर हमला करने की मंजूरी दी थी। इस दावे ने राजनीतिक और रणनीतिक हलकों में तीव्र बहस छेड़ दी है, जिससे इस क्षेत्र की भू-राजनीति पर इसके संभावित प्रभावों के बारे में सवाल उठ रहे हैं।
'इंदिरा गांधी ने PAK की न्यूक्लियर साइट पर हमले की मंजूरी...', CIA के पूर्व अधिकारी का दावा
घटना का सारांश — कौन, क्या, कब, कहाँ
नई दिल्ली, 8 नवंबर, 2024: एक पूर्व CIA अधिकारी ब्रूस रिडेल ने एक इंटरव्यू में दावा किया है कि भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1980 के दशक की शुरुआत में पाकिस्तान के परमाणु स्थलों पर हमला करने की मंजूरी दी थी। रिडेल का कहना है कि भारत, पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम को लेकर चिंतित था, और इंदिरा गांधी ने इसे रोकने के लिए एक सैन्य अभियान की योजना बनाई थी।
रिडेल के अनुसार, यह योजना 1981 में बनाई गई थी, जब इजराइल ने इराक के ओसिराक परमाणु रिएक्टर पर हमला किया था। इस घटना ने इंदिरा गांधी को पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर और भी अधिक चिंतित कर दिया था, और उन्होंने एक ऐसा ही हमला करने का फैसला किया था। रिडेल ने यह भी दावा किया है कि CIA को इस योजना की जानकारी थी, और उसने भारत को हमला न करने की सलाह दी थी, क्योंकि इससे दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ सकता था।
'इंदिरा गांधी ने PAK की न्यूक्लियर साइट पर हमले की मंजूरी...', CIA के पूर्व अधिकारी का दावा — प्रमुख बयान और संदर्भ
ब्रूस रिडेल, जो कि CIA में दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ थे, ने अपने इंटरव्यू में कहा, "इंदिरा गांधी पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर बहुत चिंतित थीं। उन्हें डर था कि पाकिस्तान परमाणु हथियार बना लेगा, और फिर भारत को ब्लैकमेल करेगा। इसलिए, उन्होंने पाकिस्तान के परमाणु स्थलों पर हमला करने का फैसला किया।"
रिडेल ने आगे कहा, "CIA को इस योजना की जानकारी थी। हमने इंदिरा गांधी को हमला न करने की सलाह दी थी, क्योंकि इससे दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ सकता था। लेकिन इंदिरा गांधी ने हमारी बात नहीं सुनी।"
रिडेल ने यह भी दावा किया कि भारत ने 1984 में पाकिस्तान के परमाणु स्थलों पर हमला करने की योजना बनाई थी, लेकिन बाद में इसे रद्द कर दिया गया। उन्होंने कहा कि इस हमले को रद्द करने का कारण यह था कि भारत को पता चला कि पाकिस्तान ने अपने परमाणु हथियारों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया है।
प्रभाव और प्रतिक्रिया
ब्रूस रिडेल के इस दावे पर भारत और पाकिस्तान दोनों में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। भारतीय राजनेताओं और रणनीतिक विशेषज्ञों ने इस दावे पर संदेह जताया है, जबकि पाकिस्तानी अधिकारियों ने इसे भारत के खिलाफ दुष्प्रचार का हिस्सा बताया है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, "यह दावा पूरी तरह से निराधार है। इंदिरा गांधी एक जिम्मेदार नेता थीं, और वे कभी भी ऐसा कदम नहीं उठातीं जिससे दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ जाए।"
कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, "हम इस दावे पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं। यह एक संवेदनशील मामला है, और हमें कोई भी ऐसा बयान नहीं देना चाहिए जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ जाए।"
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "यह दावा भारत के खिलाफ दुष्प्रचार का हिस्सा है। भारत हमेशा से पाकिस्तान को बदनाम करने की कोशिश करता रहा है।"
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि रिडेल का दावा भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को और भी खराब कर सकता है। उनका कहना है कि इस दावे से दोनों देशों के बीच अविश्वास बढ़ेगा, और शांति प्रक्रिया को नुकसान पहुंचेगा।
राजनीतिक विश्लेषण / प्रभाव और मायने
पूर्व CIA अधिकारी के दावे से भारत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक तनाव की जटिलता उजागर होती है। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने हमेशा अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता दी, खासकर पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के संदर्भ में। ऐसे में अगर इंदिरा गांधी ने परमाणु स्थलों पर हमले की मंजूरी दी थी, तो यह एक रणनीतिक निर्णय होता जिसका उद्देश्य भारत की सुरक्षा सुनिश्चित करना था।
हालांकि, इस तरह के हमले के गंभीर परिणाम हो सकते थे, जिसमें दोनों देशों के बीच पूर्ण युद्ध का खतरा भी शामिल था। इसलिए, यह माना जा सकता है कि इंदिरा गांधी ने अंतिम समय में हमले को रद्द करने का फैसला किया, ताकि क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखी जा सके।
इस दावे का समय भी महत्वपूर्ण है। ऐसे समय में जब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध पहले से ही तनावपूर्ण हैं, इस तरह के दावे दोनों देशों के बीच अविश्वास को और बढ़ा सकते हैं। इसलिए, दोनों देशों को इस मामले में सावधानी बरतनी चाहिए और किसी भी तरह के बयान से बचना चाहिए जिससे तनाव बढ़ सकता है।
क्या देखें
- भारत और पाकिस्तान की सरकारों की आधिकारिक प्रतिक्रिया।
- इस दावे के समर्थन या खंडन में अतिरिक्त सबूत या दस्तावेज।
- दोनों देशों के बीच संबंधों पर इस दावे का दीर्घकालिक प्रभाव।
- क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस दावे की प्रतिक्रिया।
- अन्य CIA अधिकारियों या संबंधित व्यक्तियों के अतिरिक्त खुलासे।
निष्कर्ष — आगे की संभावनाएँ
पूर्व CIA अधिकारी के दावे ने भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों पर एक बार फिर सवालिया निशान लगा दिया है। हालांकि इस दावे की सच्चाई अभी भी स्पष्ट नहीं है, लेकिन इसने दोनों देशों के बीच अविश्वास को और बढ़ा दिया है। आगे यह देखना होगा कि इस दावे का दोनों देशों के संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्या यह शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारने का काम करता है।
इस घटना से यह भी सबक मिलता है कि अतीत के घावों को भरने और भविष्य में शांति और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भारत और पाकिस्तान को एक-दूसरे के साथ खुले और ईमानदार संवाद में शामिल होना चाहिए। दोनों देशों को क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
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