NATO kya hai ?
1. Introduction (परिचय)-
जब भी वैश्विक सुरक्षा , युद्ध की बात होती है तो एक नाम न्यूज़ में जरूर सुनाई देता है और वो है – NATO.आज के भाग दौड़ और संघर्षरत वाली दुनिया में NATO वैश्विक राजनीति का केंद्र माना जाता है.लेकिन लोगो मन में अक्सर से सवाल आता है की NATO है क्या ? क्या यह सिर्फ एक सैन्य संगठन है या उससे ज्यादा कुछ है और इससे भारत का क्या रिश्ता है ?
तो आइये इस आर्टिकल में हम NATO के इतिहास, उद्देश्य, सदस्यों, वर्त्तमान भूमिका और विवाद के बारे में विस्तार से जानेंगे.
सबसे NATO के बारे में मूल बाते जान लेते हैं-
- NATO का फुल
फॉर्म है : नार्थ अटलांटिक ट्रिटी आर्गेनाइजेशन (North Atlantic Treaty
Organization
- इसकी संस्थापना 1949 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुई थी, जब दुनिया शीतयुद्ध की तरफ बढ़ रही थी
- NATO का मूल विचार है सामूहिक सुरक्षा - मतलब अगर किसी एक सदस्य पर आक्रमण होता है तो सभी सदस्य मिलकर उसकी रक्षा करेंगे
- आज नाटो सिर्फ एक सैन्य संगठन नहीं है-यह साइबर खतरों, आतंकवाद और वैश्विक राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाता है
तो चलिए NATO के past, present और future के बारे में विस्तार से जानते हैं.
2. NATO का उद्देश्य क्या है (purpose of NATO)
जब हम NATO के बारे में बात करते हैं तो सबसे महत्वपूर्ण चीज़ इसका उद्देश्य । क्या ये सिर्फ एक सैन्य संगठन है या इसका रोल कुछ और भी है ?
NATO का मुख्य उद्देश्य - सामूहिक सुरक्षा NATO का मुख्य उद्देश्य है:
NATO के सदस्य देशों की सुरक्षा करना- "एक पर हमला, सब पर हमला". इस अवधारणा को आर्टिकल 5 कहते हैं, जो NATO ट्रिटी का सबसे पावरफुल नियम है.यदि किसी सदस्य पर सशस्त्र हमला होता है, तो अन्य सभी नाटो देश उसकी रक्षा के लिए सैन्य, कूटनीतिक या खुफिया सहायता के माध्यम से कार्रवाई करते है.
शीतयुद्ध के दौर में NATO की भूमिका:
NATO को बनाया गया था प्रमुखतः सोवियत संघ (USSR) के खतरे को रोकने के लिए. 1940s–1980s तक दुनिया दो भाग में बटी हुई थी.
1. पश्चिमी ब्लॉक (अमेरिका के नेतृत्व वाला नाटो)
2. पूर्वी ब्लॉक (सोवियत संघ के नेतृत्व वाला वारसॉ संधि)
3. USSR के विस्तार को रोकना और यूरोप में शांति और स्थिरता बनाये रखना
4. यूरोप को Communist कंट्रोल से बचाना
5. सदस्यों के बीच सैन्य समन्वय और विश्वास स्थापित करना
तब यह एक रक्षात्मक सैन्य समूह था. जिसका मुख्य उद्देश्य Eastern Bloc (USSR + Allies) से बचाव करना था.
आधुनिक दौर में NATO की भूमिका बदल गई है :
आधुनिक दौर में खतरा सिर्फ युद्ध तक सीमित नहीं है. इसलिए NATO की भूमिका भी आधुनिक दौर के हिसाब से बदल गई है.
NATO के आधुनिक उद्देश्य :
- आतंकवाद रोकना – जैसे अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के खिलाफ मिशन
- साइबर सुरक्षा – Hackers और DIgital खतरों से सुरक्षा
- शांति अभियान चलाना –
संघर्ष क्षेत्र में शांति बनाये रखना जैसे (लीबिया और कोसोवो में)
- आपदा में सहायता करना – प्राकृतिक आपदाओं में आपातकालीन सहायता प्रदान करना
- राजनीतिक या सैन्य सहयोग – संयुक्त सैन्य अभ्यास या ख़ुफ़िया जानकारी साझा करना
NATO एक डायलॉग प्लेटफार्म भी है:
NATO सिर्फ सैन्य गठबंधन नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संवाद मंच भी है जहां के सदस्य:
- अपनी सुरक्षा संबंधी
चिंताएँ साझा करते हैं
- संयुक्त प्रतिक्रिया योजना बनाते हैं
- कूटनीतिक समन्वय सुधारते हैं
आज, NATO सिर्फ़ एक युद्धकालीन संगठन नहीं रह गया है। यह एक बहुउद्देश्यीय वैश्विक सुरक्षा नेटवर्क है जो अपने सदस्यों को पारंपरिक और गैर-पारंपरिक खतरों से बचाता है - चाहे वह मिसाइल हमले हों, साइबर युद्ध हों या आतंकवाद।
3. NATO के सदस्य कौन हैं?(Who are the Members of NATO?)
NATO एक सैन्य गठबंधन जिसमे दुनिया के कुछ सबसे शक्तिशाली देश शामिल है. इसका लक्ष्य आपसी सुरक्षा है – और इस काम को करने के लिए NATO के पास मजबूत देशों का समूह है जो मिलकर काम करते हैं .
वर्तमान सदस्य: (2024 तक)
2024 तक NATO के 32 सदस्य हैं. ये देश मुख्य रूप से अमेरिका और यूरोप महाद्वीप के हैं
संस्थापक सदस्य (1949 में शामिल हुए):
1. संयुक्त राज्य अमेरिका
2. यूनाइटेड किंगडम
3. फ़्रांस
4. कनाडा
5. इटली
6. बेल्जियम
7. नीदरलैंड
8. लक्ज़मबर्ग
9. डेनमार्क
10.नॉर्वे
11.पुर्तगाल
12.आइसलैंड
ये 12 देश NATO के संस्थापक सदस्य हैं
नए देश कब शामिल हुए?
नाटो की सदस्यता के समय के साथ-साथ विस्तार भी हो गया, खासकर शीत युद्ध के बाद जब पूर्व सोवियत-ब्लॉक देश भी नाटो का हिस्सा बन गए।
महत्वपूर्ण परिवर्धन:
- जर्मनी (1955)
- स्पेन (1982)
- पोलैंड, हंगरी, चेक गणराज्य (1999)
- एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, रोमानिया, बुल्गारिया (2004)
- क्रोएशिया, अल्बानिया (2009)
- मोंटेनेग्रो (2017)
- उत्तरी मैसेडोनिया (2020)
- फ़िनलैंड (2023)
- स्वीडन (2024)
NATO सदस्य – क्षेत्रवार विवरण:
उत्तरी अमेरिका:
- संयुक्त राज्य अमेरिका
- कनाडा
पश्चिमी यूरोप:
- यूके, फ्रांस, जर्मनी, इटली, बेल्जियम, नीदरलैंड, लक्ज़मबर्ग, पुर्तगाल, स्पेन
पूर्वी यूरोप:
- पोलैंड, रोमानिया, बुल्गारिया, हंगरी, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया, आदि।
स्कैंडिनेविया और बाल्टिक:
- डेनमार्क, नॉर्वे, आइसलैंड, फ़िनलैंड, स्वीडन, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया
दक्षिणी यूरोप और बाल्कन:
- ग्रीस, तुर्की, क्रोएशिया, अल्बानिया, मोंटेनेग्रो, उत्तरी मैसेडोनिया, स्लोवेनिया
NATO सदस्यता की सर्ते ?
NATO का सदस्य बनने की प्रमुख सर्ते होती हैं :
- देश में लोकतंत्र होना चाहिए
- देश में सैन्य क्षमता और राजनीतिक स्थिरता होनी चाहिए
- NATO का मूल्य – स्वतंत्रता, लोकतंत्र, कानून का शासन – को स्वीकार करना जरूरी है
कौन कौन सदस्य नहीं है (उल्लेखनीय गैर-सदस्य)?
- भारत- गुट निरपेक्ष नीति का पालन करता है
- चीन - नाटो के विपरीत ब्लॉक में मन जाता है
- रूस - पहले नाटो के साथ संवाद थे, लेकिन अब संघर्ष की स्थिति है
- यूक्रेन - शामिल होने की आकांक्षा है, लेकिन संघर्ष की वजह से पूर्ण सदस्य नहीं है (2024 तक)
NATO के सदस्य दुनिया के सबसे शक्तिशाली सैन्य गठबंधन बनते हैं। ये गठबंधन की ताकत ही है जो इसे 75+ साल से दुनिया की प्रमुख भू-राजनीतिक ताकत बना रखा है। हर सदस्य एक अद्वितीय रणनीतिक मूल्य रखता है.
4. NATO का इतिहास (NATO कैसे और क्यों बना?)
आज हम NATO को एक तकनिकी और शक्तिशाली संगठन के रूप जानते हैं जिसका जन्म द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक ऐसे समय में हुआ जब दुनिया एक नए खतरे का सामना करने वाली थी और वो खतरा था शीत युद्ध.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के हालात
1945 में द्वितीय विश्व युद्ध ख़तम हुआ। लेकिन शांति के साथ-साथ एक नया वैश्विक तनाव भी शुरू हो गया - संयुक्त राज्य अमेरिका और यूएसएसआर के बीच वैचारिक संघर्ष। एक तरफ था पूंजीवादी पश्चिम (अमेरिका और मित्र राष्ट्र), और दूसरी तरफ था कम्युनिस्ट पूर्व (सोवियत संघ और सहयोगी)। यूएसएसआर पूर्वी यूरोप के देशों पर अपना प्रभाव बढ़ रहा था और पश्चिमी देशों को डर था कि कहीं पूरा यूरोप कम्युनिस्ट नियंत्रण में न चले।
शीतयुद्ध की शरुवात
शीत युद्ध आधिकारिक तौर पर युद्ध नहीं था, लेकिन राजनीतिक, सैन्य और वैचारिक तनाव का माहौल बन चुका था। सोवियत संघ ने अपना समूह बनाया - वारसा संधि, जिसके पूर्वी ब्लॉक देश थे। इसी खतरे को संतुलित करने के लिए पश्चिमी देशों ने निर्णय लिया कि एक सैन्य गठबंधन बनाया जाएगा - और यहीं से नाटो का जन्म हुआ।
NATO की शपथ कब हुई ?
NATO की शपथ 4 अप्रैल 1949 को वाशिंगटन डी. सी. USA में, 12 फाउंडर मेंबर्स – संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, बेल्जियम, नीदरलैंड, लक्ज़मबर्ग, पुर्तगाल, इटली, नॉर्वे, डेनमार्क, आइसलैंड इन देशों ने मिलकर एक ट्रिटी sign की जिसे NATO (North Alliance Trity Organization)कहते हैं.
नाटो का प्रारंभिक उद्देश्य क्या था?
1. सोवियत संघ के सैन्य विस्तार को रोकना
2. यूरोप में राजनीतिक स्थिरता बनाये रखना
3. सदस्य देशों को एक दूसरे के करीब लाना
4. अमेरिका और यूरोप के बीच रणनीतिक साझेदारी को औपचारिक आकार देना
NATO द्वारा लडे गए युद्ध
NATO की प्रारंभिक भूमिका रक्षात्मक रही है, लेकिन समय के साथ NATO कई मिलिट्री और peasekeeping मिशन में भाग लिया है
1. बोस्निया (1995) - गृह युद्ध के बाद शांति स्थापना
2. कोसोवो (1999) - सर्बियाई सेनाओं के विरुद्ध
3. अफ़ग़ानिस्तान (2001-2021) - आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध
4. लीबिया (2011)- गद्दाफी के हवाई हमले के खिलाफ
शीतयुद्ध के बाद NATO ने अपने आप को कैसे बदला ?
1991 USSR कई हिस्सों में टूट गया लेकिन NATO ख़तम नहीं हुआ. बल्कि NATO ने नए देशों को अपने संगठन में शामिल किया (ईस्टर्न यूरोप के देश जैसे : पोलैंड,हंगरी,रोमानिया)
नाटो आज भी क्या प्रासंगिक है?
- रूस का आक्रामक व्यवहार (जैसे, यूक्रेन पर आक्रमण)
- वैश्विक आतंकवाद का ख़तरा
- चीन का बढ़ता प्रभाव
- साइबर हमले और हाइब्रिड युद्ध
ये सब NATO की अहमियत को आज भी बनाये रखते हैं.
NATO आज ये एक सक्रिय वैश्विक ताकत पर प्रतिबंध लगा चुका है। 1949 में जो गठबंधन सिर्फ 12 देशों ने बनाया था, आज 30+ शक्तिशाली देशों का विश्वास और प्रतिबद्धता बन गई है।
5. NATO आज क्या करता है? (नाटो की वर्तमान भूमिका)
जब शीत युद्ध ख़त्म हुआ और यूएसएसआर का पतन हो गया (1991), तब लोगों ने सोचा कि अब नाटो की ज़रूरत नहीं है। लेकिन NATO ने खुद को फिर से परिभाषित किया, और आज ये गठबंधन एक पारंपरिक सैन्य समूह है.
नये खतरे, नयी रणनीति
आज के समय में नाटो की भूमिका काफ़ी विस्तृत हो चुकी है। सिर्फ जंग लड़ना ही नहीं, खतरे के नए रूप - जैसे साइबर हमले, आतंकवाद, राजनीतिक अस्थिरता, दुष्प्रचार - से भी निपटना इसका हिस्सा है।
नाटो की आधुनिक भूमिकाएँ:
1. सामूहिक सुरक्षा
NATO का मूल सिद्धांत अब भी वही है - "एक पर हमला, तो सब पर हमला।" अगर किसी सदस्य देश पर सशस्त्र हमला होता है, तो सभी सदस्य मिलकर रक्षा करते हैं। उदाहरण: 2001 के बाद, जब 9/11 हुआ, तो पहली बार अनुच्छेद 5 सक्रिय हुआ और नाटो ने यूएसए को समर्थन दिया।
2. आतंकवाद के ख़िलाफ़ वैश्विक मिशन
NATO ने अफगानिस्तान में 20 साल तक (2001-2021) आतंक के खिलाफ युद्ध चलाया। क्या मिशन का नाम ISAF (अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल) था। इसके अलावा नाटो कई देशों के साथ आतंकवाद विरोधी प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाता है।
3. साइबर सुरक्षा
डिजिटल दुनियां में साइबर हमला एक नया खतरा बन गया है . NATO साइबर खतरों को भी हमला मानता है। अगर किसी सदस्य देश के ऊपर साइबर खतरा होता है तो NATO उसका जवाब दे सकता है
4. शांति अभियान
NATO काफी बार शांति मिशन पर गया है :
- कोसोवो (KFOR)
- बोस्निया हर्जेगोविना
- इराक़ प्रशिक्षण मिशन
5. खुफिया जानकारी साझा करना और संयुक्त सैन्य अभ्यास
NATO सदस्यों के बीच बड़े पैमाने पर ख़ुफ़िया जानकारी का आदान प्रदान होता है जैसे – आतंकी गतिविधियाँ, अवैध हथियार, सीमा सुरक्षा आदि ।
साथ ही regular joint military drills भी होती है जैसे :
- Defender Europe
- Steadfast Noon
6. संकट प्रबंधन और आपदा राहत
- भूकंप, बाढ़, या महामारी जैसी स्थितियों में नाटो आपातकालीन रसद, एयरलिफ्ट, बचाव सहायता भी देता है।
- COVID-19 के दौरान नाटो ने कई सदस्यों और साझेदार देशों को चिकित्सा सहायता और उपकरण आपूर्ति की थी।
7. दुष्प्रचार और हाइब्रिड वारफेयर से बचाव
- रूस और चीन में विरोधी फर्जी खबरें, प्रचार और चुनाव में हस्तक्षेप जैसे हाइब्रिड रणनीति का उपयोग करते हैं।
- नाटो सब से लड़ने के लिए रणनीतिक संचार केंद्र संचालित करता है।
8. वर्त्तमान में NATO का कार्य क्षेत्र
- रूस-यूक्रेन संघर्ष - यूक्रेन नाटो सदस्य नहीं है, लेकिन उसे समर्थन देना (सैन्य, मानवीय, प्रशिक्षण)
- पूर्वी यूरोप सुरक्षा - बाल्टिक राज्य और पोलैंड में नाटो की उपस्थिति बढ़ाना
- इंडो-पैसिफिक डायलॉग - चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए नाटो ने जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया के साथ समन्वय शुरू किया है
आज नाटो का काम सिर्फ युद्ध तक सीमित नहीं है। ये एक आधुनिक, तकनीक-प्रेमी और विश्व स्तर पर जिम्मेदार गठबंधन बन चुका है जो सेना से ले कर साइबर, आपदा राहत और कूटनीति तक सब कुछ संभालता है। नाटो ने अपने आप को बदलते समय के साथ अनुकूलित किया है इसलिए आज भी ये दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण सैन्य गठबंधन है।
6. NATO और भारत
जब भी NATO की बात होती है तो एक बात ख्याल में आती है क्या “भारत भी NATO का सदस्य है ?” जवाब सरल है नहीं. क्यूंकि भारत हमेशा गुट निरपेक्ष की नीति का अनुसरण करता है . लेकिन NATO और भारत के बीच राजनीतिक जुड़ाव तो है पर भारत अधिकारिक तौर पर NATO का सदस्य नहीं है.
भारत नाटो का सदस्य क्यों नहीं है?
- गुट निरपेक्ष नीति (NAM) का प्रभाव
आजादी के बाद से भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) को अपनाया - यानि ना तो यूएसए ब्लॉक के साथ, ना यूएसएसआर ब्लॉक के साथ। नाटो एक पश्चिमी सैन्य गठबंधन था, इसलिए भारत ने दूरी बनाकर रखा।
- सामरिक स्वायत्तता
भारत हमेशा अपनी विदेश नीति में रणनीतिक स्वतंत्रता चाहता है। नाटो जैसे गठबंधनों में शामिल होने से विदेशी सैन्य प्रतिबद्धताएं आ जाती हैं - जिसे भारत टालता है।
- भूगोल और फोकस क्षेत्र
NATO का भौगोलिक फोकस उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र (यूरोप + उत्तरी अमेरिका) है, जबकी भारत दक्षिण एशिया में है।
क्या नाटो और भारत के बीच कोई संबंध है?
हाँ, पिछले कुछ वर्षों में सीमित रणनीतिक संवाद और सहयोग हुआ है।
प्रमुख कार्य:
- NATO-भारत राजनीतिक वार्ता कई बार हुई है, विशेषकर 2010 के बाद।
- आतंकवाद-निरोध और साइबर सुरक्षा पर कुछ आदान-प्रदान हुआ है।
- सैन्य पर्यवेक्षकों को नाटो अभ्यास में आमंत्रित किया गया है।
- NATO के प्रतिनिधियों और भारत के राजनयिकों के बीच रणनीतिक मुद्दों पर बैठकें चल रही हैं।
तत्कालीन घटनाक्रम: भारत और नाटो का बढ़ता संवाद
- रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया में भारत की स्थिति महत्वपूर्ण हो गई है।
- 2023-2024 के दौर में NATO ने भारत के साथ लगातार राजनयिक संवाद शुरू किये।
- अमेरिका के माध्यम से अप्रत्यक्ष NATO समन्वय भी बढ़ गया है - जैसे QUAD, I2U2 जैसे समूह।
NATO के नजरिए से भारत कैसा पार्टनर है?
- एक प्रमुख लोकतांत्रिक शक्ति है
- एशिया में चीन के विस्तार को संतुलित करने में मदद मिल सकती है
- एक प्रौद्योगिकी और रक्षा साझेदार के रूप में मूल्यवान है
परन्तु सैन्य संगठन में भारत को लाना कठिन है क्यूंकि भारत अपनी स्वतंत्रता और विदेशनीति को साझा नहीं करता .
क्या भारत भविष्य में नाटो से जुड़ सकता है?
संभावना बहुत कम है. क्योंकि:
- भारत किसी भी सैन्य गठबंधन का स्थायी सदस्य बनने के मूड में नहीं है
- भारत BRICS, SCO और ग्लोबल साउथ में एक स्वतंत्र नेता बनना चाहता है
- NATO और भारत के बीच सहयोग बढ़ सकता है, लेकिन सदस्यता की संभावना नहीं है
भारत और नाटो के बीच दूरियां भी हैं, और दोस्ती भी। दोस्ती कूटनीतिक स्तर तक सीमित है, और दूरी रणनीतिक गठबंधन के स्तर पर है। लेकिन बदलती ग्लोबल राजनीति - जैसे चीन का उदय, रूस-यूक्रेन युद्ध, और हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्व - सबके चलते भविष्य में भारत और NATO के बीच गहरी सहभागिता और सहयोग और बढ़ने की पूरी संभावना है।
7. NATO के विवाद और आलोचना
जितना शक्तिशाली और प्रभावशाली NATO है, उतना ही ज़्यादा यह गठबंधन विवाद और आलोचना का भी विषय है। हर वैश्विक सैन्य शक्ति के जैसे, NATO पर भी कई बार आरोप लगे हैं - कभी अतिरेक, कभी पक्षपात, और कभी अतिरिक्त क्षति के आरोप में।
सैन्य हस्तक्षेपों में नागरिकों का घायल होना या जान गवाना
NATO के कुछ मिलिट्री कार्यवाहियों ने नागरिकों के जीवन को परभावित किया है या उनकी जान ले ली है.
उदाहरण:
- कोसोवो (1999): NATO ने सर्बिया के ख़िलाफ़ हवाई हमले किए थे, जिसके नागरिक भी मारे गए।
- लीबिया (2011): NATO ने गद्दाफी के ख़िलाफ़ सैन्य हस्तक्षेप किया, लेकिन युद्ध के बाद लीबिया में पूरी तरह से अराजकता पैदा हो गई।
- अफगानिस्तान युद्ध (2001-2021): NATO के नेतृत्व वाले मिशनों में नागरिकों की मौत और बुनियादी ढांचे के विनाश के काफी मामलों की रिपोर्ट आई।
NATO में अमेरिका का प्रभुत्त्व
- आर्थिक रूप से, सैन्य रूप से और रणनीतिक रूप से - यूएसए सबसे ज्यादा योगदान देता है।
- कई बार ऐसा लगता है कि नाटो का निर्णय संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रीय हित के अनुसार होता है, ना कि सामूहिक निर्णय से।
रूस के साथ तनाव - उकसावे का दोष
- शीत युद्ध के बाद NATO ने पूर्वी यूरोपीय देशों को शामिल किया - जैसे पोलैंड, एस्टोनिया, लातविया, आदि।
- रूस इसे खतरे के रूप में देखता है।
- यूक्रेन के NATO की आकांक्षा को लेकर रूस ने आक्रमण को उचित ठहराया।
सदस्यों के बीच वित्तीय बोझ संबंधी विवाद
आलोचना: सभी नाटो सदस्य समान योगदान नहीं देते।
अनुच्छेद 3 के मुताबिक़ हर देश को अपने सैन्य बजट का न्यूनतम 2% नाटो पर खर्च करना होता है। लेकिन काई देश - विशेष रूप से जर्मनी, इटली - लक्ष्य को लगातार हासिल नहीं कर पाते हैं। यूएसए बार-बार शिकायत कर रहा है: "अमेरिकी करदाताओं को यूरोप की सुरक्षा के लिए भुगतान क्यों करना चाहिए?"
NATO की भूमिका गैर-संयुक्त राष्ट्र अधिदेशित संचालन में
आलोचना: कई बार NATO ने ऐसे कदम उठाए जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मंजूरी के बिना हुए।
उदाहरण: लीबिया हस्तक्षेप 2011 में शुरू हुआ संयुक्त राष्ट्र के नाम पर, लेकिन बाद में उसमे NATO आ गया, जिसको रूस और चीन ने अवैध कहा।
NATO East बनाम Global South Bias
आलोचना: NATO सिर्फ यूरोप और पश्चिम को सुरक्षित करता है, लेकिन ग्लोबल साउथ के मुद्दे काफी निष्क्रिय हैं।
अफ़्रीका, दक्षिण एशिया या मध्य पूर्व के संकटों में NATO की सहभागिता चयनात्मक होती है। आरोप यह भी है कि NATO का एजेंडा पश्चिमी आधिपत्य की रक्षा करना है - ना कि विश्व शांति।
NATO की आलोचना पर प्रतिक्रिया
- NATO हर बार नागरिक क्षति के आरोपों पर आंतरिक जांच करता है।
- वित्तीय मुद्दे बराबर रक्षा व्यय लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं।
- रूस के विस्तार के आरोपों के जवाब में NATO का कहना है: "हम संप्रभु राष्ट्रों की पसंद का सम्मान करते हैं। किसी देश को शामिल करना है या नहीं - ये उसका निर्णय है।"
NATO दुनिया का सबसे शक्तिशाली सैन्य गठबंधन है - लेकिन सत्ता के साथ जिम्मेदारी भी आती है। जब कार्रवाई विवादास्पद होती है, तो वैश्विक आलोचना भी अपरिहार्य होती है। लेकिन सब के झगड़े में, नाटो ने अपने 75 साल के सफर में वैश्विक संघर्षों को संभाला है.
8 NATO vs. BRICS/SCO – (शक्ति,संतुलन और प्रतिद्वंदी)
आज के समय में Geo-politics में तरफ का खेल नहीं चल रहा है। जहां एक तरफ पश्चिम के पास NATO जैसा शक्तिशाली सैन्य गठबंधन है, वही दूसरी तरफ उभरती शक्तियां - जैसे चीन, रूस, भारत - नए समूह बन रहे हैं जिन्हें हम कहते हैं BRICS और SCO तो सवाल उठता है - BRICS या SCO, NATO का विकल्पहै? क्या वैश्विक शक्ति संतुलन बदल रहा है?
NATO: पश्चिम का सैन्य प्रभुत्व
स्थापना: 1949
सदस्य: 32 (मुख्य रूप से उत्तरी अमेरिका और यूरोप) मुख्य
मुख्य कार्य: सैन्य रक्षा, रणनीतिक गठबंधन, आतंकवाद विरोधी, साइबर सुरक्षा
नेतृत्व: यूएसए (प्रमुख वित्तीय और सैन्य योगदानकर्ता) भू-राजनीतिक
प्रकृति: मुख्य रूप से पश्चिम-केंद्रित; रूस और चीन के रुख के खिलाफ
NATO का उद्देश्य अपने सदस्यों की सैन्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है। ये गठबंधन शीत युद्ध का दौर बना था, और आज भी रूस और चीन को काउंटर करना इसकी प्राथमिक चिंता है।
BRICS: आर्थिक शक्ति समूह
सदस्य: ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात, ईरान, इथियोपिया (2024 के विस्तार तक)
मुख्य कार्य: आर्थिक सहयोग, वैश्विक वित्तीय प्रणाली सुधार प्रकृति: गैर-सैन्य, बहुध्रुवीय विश्व को बढ़ावा
नेतृत्व: सामूहिक रूप से संचालित; प्रमुख आवाज़ें - चीन, भारत, रूस
BRICS का उद्देश्य है कि विश्व अर्थव्यवस्था सिर्फ़ पश्चिमी नियंत्रण में न हो, और वैकल्पिक वैश्विक वित्तीय संस्थान (जैसे न्यू डेवलपमेंट बैंक) बनाए जाएँ। भारत, रूस और चीन - तीन BRICS सदस्य ऐसे हैं जिनके NATO से जटिल संबंध हैं।
वैश्विक शक्ति संतुलन - किस तरफ बढ़ रहा है?
- NATO अब भी सैन्य प्रौद्योगिकी, वित्त पोषण और अंतरराष्ट्रीय रक्षा प्रणाली में शीर्ष स्थान पर है।
- BRICS और SCO धीरे-धीरे आर्थिक और रणनीतिक प्रभाव बढ़ा रहे हैं - विशेषकर विकासशील देशों में।
- ग्लोबल साऊथ (एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका) नाटो के अलावा BRICS/SCO के साथ ज्यादा संरेखित हो रहा है क्योंकि उन्हें पश्चिम-प्रभुत्व वाले आदेश से निराशा है।
क्या ब्रिक्स/एससीओ नाटो का प्रतिद्वंद्वी बन पाएंगे?
ताकत: आर्थिक भार बढ़ता जा रहा है (विशेषकर चीन और भारत) वैकल्पिक बैंकिंग प्रणालियाँ बन रही हैं (ब्रिक्स बैंक) क्षेत्रीय प्रभाव ज़्यादा हो रहा है
कमजोरियाँ: आंतरिक मतभेद (भारत vs चीन, रूस vs पश्चिम) औपचारिक सैन्य गठबंधन संरचना का अभाव रणनीतिक स्पष्टता और एकता काम है
NATO एक स्थापित सैन्य शक्ति है, जबकी BRICS और SCO अभी भी वैकल्पिक वैश्विक व्यवस्था के दृष्टिकोण पर काम कर रहे हैं। BRICS और SCO का प्रभाव बढ़ रहा है, लेकिन NATO का प्रभुत्व अभी भी बेजोड़ है - विशेषकर सैन्य ताकत और रक्षा समन्वय में।
निष्कर्ष – NATO एक बदलते दौर का सैनिक संस्थान
1949 में बनने वाला NATO आज सिर्फ एक सैन्य गठबंधन नहीं, बल्कि एक विकसित वैश्विक सुरक्षा मंच बन चुका है। इसने शीत युद्ध के दौरान सोवियत धमकी का सामना किया, 9/11 के बाद आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की, और आज के डिजिटल और बहुध्रुवीय दुनिया में साइबर हमले, हाइब्रिड युद्ध और वैश्विक अस्थिरता के खिलाफ सक्रिय भूमिका ले रहा है।
क्या सीखने को मिला?
NATO का मुख्य उद्देश्य है: सामूहिक रक्षा - "एक पर हमला, सब पर हमला।" ये गठबंधन यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देशों के बीच बना था, लेकिन आज इसका प्रभाव वैश्विक हो चुका है। भारत नाटो का सदस्य नहीं है, लेकिन रणनीतिक बातचीत और अप्रत्यक्ष बातचीत जारी है। ब्रिक्स और एससीओ जैसे गठबंधन उसका आर्थिक-राजनीतिक प्रतिकार बन रहे हैं। लेकिन नाटो अब भी सैन्य और रक्षा में सबसे मजबूत और समन्वित वैश्विक बल माना जाता है। चीन का इंडो-पैसिफिक विस्तार साइबर युद्ध और गलत सूचना वैश्विक आतंकवाद तो ऐसी में नाटो की ज़िम्मेदारी और भी बढ़ गई है। पर साथ ही, आंतरिक एकता, बजट असंतुलन और जनता का विश्वास जैसी चुनौतियाँ भी नाटो के भविष्य को परख रही हैं।
भविष्य की दृष्टि अगर नाटो अपने आप को समावेशी, लचीला और तकनीक-तैयार बनाता रहा, तो ये 21वीं सदी में भी वैश्विक शांति और सुरक्षा का एक स्तंभ बन जाएगा। वरना, नए गठबंधन, क्षेत्रीय ब्लॉक, और गैर-पारंपरिक खतरे उसकी जगह ले सकते हैं।
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